गुरुवार, 28 सितंबर 2017

इकोफ्रेंडली

पहला पक्ष :रोहन ने अपने 4 दोस्तों के साथ 5 जून को शहर के एक हरे भरे पार्क में एक पौधा लगाया और फोटो खिंचा कर अपने फेसबुक वाल,इंस्टाग्राम और व्हाट्सअप ग्रुप्स में डालकर सभी को पर्यावरण दिवस की शुभकामनाएँ दीं. और साथ ही साथ एक फोटो पेपर में भी छपवा दी...........सबने बहुत सराहना ही उनके इस कार्य की।
दूसरा पक्ष: सभी मित्र अपनी धुँवा उड़ाने वाली  बाइक्स में निकल गए एक तालाब के किनारे बैठ कर दारु और चखने वाली  पार्टी की। ..कचड़ा उसी तालाब में  फेंका रूम आकर ऊँची आवाज में बूफर  में गाना चलाया और एसी में सो गए...

"प्रदर्शित करने और जीवनशैली  में उतारने में बहुत फर्क होता है"  

हरे भरे पौधों से लदे  पार्क में पौधा लगाकर फिर....  धुवाँ  उड़ाकर ,एसी चलाकर हवा  प्रदूषित की। तालाब में कचड़ा  फेकर जल प्रदूषित किया।  फिर ऊँची आवाज में म्यूजिक बजाकर ध्वनि प्रदुषण फैलाने के बाद।  
आपको इकोफ्रेंडली  कहना मूर्खता होगी।              


शुक्रवार, 22 सितंबर 2017

बाकि वो है

बाकि  वो है,जो सामने नहीं आया।
बाकि वो है ,जो शब्दों में अभिव्यक्त नहीं हुआ।
बाकि वो है , जो तोड़ नहीं पाया बंदिश होंठो की।

वो गतिविधियाँ बाकि हैं , जिन्हें काट दिया जाता है प्रदर्शन के पूर्व।
वो पन्ने बाकि हैं, जिन्हें हटा दिया जाता है प्रकाशन के पूर्व।
वो कहना बाकि हैं,जो दब गया होहल्ले में।

बाकि वो है, जिससे आकर्षक दिखावा नहीं हो पाता।
बाकि वो है, जिससे राजनितिक स्वार्थ नहीं पूरा होता।
बाकि वो है, जिसे समाज सुनना नहीं चाहता।

जो बाकि रह गया है,वो दिखाना चाहता हूँ।
जो बाकि रह गया है,वो लिखना चाहता हूँ।
जो बाकि रह गया है, वो कहना चाहता हूँ।

मंगलवार, 19 सितंबर 2017

कंधो का बोझ

पार्क की एक बेंच पर अपनी धर्मपत्नी के साथ बैठे शर्मा जी आज अपने कंधो को कुछ जादा भारी महसूस कर रहे थे। हालाँकि वो उम्र के उस पड़ाव पर थे जहाँ बहुत सी जिम्मेदारियों से मुक्ति मिल जाती है और कंधो का बोझ बहुत हद तक कम भी हो जाता है.लेकिन उनके कंधो पर इतना बोझ क्यों था??

दर असल वो दम्पत्ति एक मुंबई में नशा मुक्ति केंद्र के पास के पार्क में बैठे हुए थे जहाँ उनका 28 वर्षीय पुत्र वरुण भर्ती था।
कुशाग्र बुद्धि और बहुमुखी प्रतिभा का धनी था वरुण। 7 पूर्व  आईआईटी  की परीक्षा पास करने के बाद मुम्बई आईआईटी में प्रवेश मिल गया था। बहुत ख़ुशी के साथ मुंबई  विदा किया था शर्मा दंपत्ति ने बेटे को की 5-6 सालो बाद उसे बैड मल्टी नेशनल  कम्पनी में बड़े अफसर के रूप में पाकर गर्व करेंगे।  पहले वर्ष में ही आकर्षक व्यक्तित्व का धनी वरुण सबका चहेता बन गया। कॉलेज के तीसरे वर्ष में उसकी दोस्ती रेहान से हुई, कुछ दिनों बाद वो रेहान के मित्रो से भी दरअसल वो 10-12 लड़के लड़कियों का समूह था जो सुकून पाने के लिए नशे का सहारा लेते थे। ऐसा कोई नशा नहीं था जो वो लोग न करतें हों।  अपने समूह का नाम उन्होंने "घेट्टो" रखा था उनके अनुसार उनके इस नाम का अर्थ था "समाज से घृणा" ये लोग समाज से उकताया हुआ महसूस करते थे स्वयं को और अपनी ही दुनिया में रहकर मात्र नशे को अपना साथी मानते थे ।साथ ही साथ बाहर से आय नए लड़के लड़कियों को अपने समूह हा हिस्सा बना लेते थे। कुछ दिनों में वरुण उनके समूह का हिस्सा बन ही गया।
वो भी इनके तमाम कृत्यों में बराबर का साझेदार बन गया।  उसके घर जाने पर उसके माता - पिता ने उसके चेहरे को तेज को उतरा हुआ महसूस भी किया लेकिन बाहर रहने का असर होगा सोचकर बात को टाल भी दिया। इसी बीच वरुण की दोस्ती नायरा से हुई जो की उसी घेट्टो समूह का हिस्सा थी। बातें आगे बढ़ी और दोनों के बीच प्यार भी पनप गया। कॉलेज खत्म होने का बाद वरुण का चयन जल्द ही एक बड़ी आईटी  कंपनी में हो गया.  इसके बाद वो नायरा के सह लिव इन रिलेसनशिप में रहने लगा। इसी बीच उनका समूह नशे में मस्त था और उन्हें पुलिस का रेड का सामना करना पड़ा। हालाँकि वो जमानत पर छुट गए किन्तु बदनामी भी हुई और साथ ही साथ वरुण को अपनी जॉब से भी हाथ धोना पड़ा। भविष्य में पैसो के आभाव के कारण नशे के आदि हो चुके वरुण और नायरा अपनी जरुरतो को पूरा करें में असमर्थ थे। नशे की प्यास न बुझने के कारण नायरा ने समुन्द्र में डुबकी लगाकर आत्महत्या कर लीं इसके बाद बात शर्मा दम्पत्ति तक पहुँचने में देर नहीं लगी। और 2 दिनों बाद सीओ मुंबई पहुँचे तबतक एक समाजसेवी संस्था का माध्यम से उनका बेटा वरुण एक नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती था।  उसे देखने का बाद भारी कंधे के साथ शर्मा दंपत्ति बैठे हुए थे उस बेंच पर बेटे की स्वस्थता की कामना लिए।
शर्मा जी कह रहे थे - " कितनो घरो को खाता है ये नशा, कितने भविष्यों को गर्त में डालता है,ये कैसा सुकून है जो जीवन तबाह कर जाता है "
जिम्मेदारियों के बोझ से छुटने के इस समय मे आज उन्हें और जादा बढ़ा हुआ महसूस कर रहा हूँ , कितने बोझिल हो गयें हैं कंधे मेरे। "

"नई नस्लों का जीवन धन्य कर दो"

तितलियों में थोड़ी और रंगत भर दो। जुगनुओं में थोड़ी और चमक भर दो। फूलों को ज्यादा खुशबुएँ दे दो। हिमानियों को अधिक सुदृढ़ कर दो। जल धाराओं को अ...