मंगलवार, 25 जुलाई 2017

अंतिम खामोशी

याद है मुझे वो लम्हा जब मैंने अंतिम बार तुम्हारी खामोशी को पढ़ा थापहली और अंतिम बार गलती कि थी मैंने तुम्हारे मौन को पढ़ने में। 
तुम्हारा खामोश हो जाना तुम्हारी अदा भी थी और मेरी कमजोरी भी। जब-जब तुमने खामोशी को चुना था। न जाने क्यों तुम पर मेरा प्यार थोड़ा ज्यादा उमड़ पड़ता था। मुझसे खफा होती थी तभी खामोश होती थी तुम, तुम्हे ख़फ़ा करना मेरी फितरत तो नही थी लेकिन तुम्हारा खामोश होना कुछ ज्यादा प्यारा लगता था मुझे। मै कई दफे जानबूझकर तुम्हे खफा किया करता था। क्यूँकी तुम जब खामोश होकर मुँह फुलाकर बैठ जाती थी,तब  तुम्हारी खूबसूरती की आभा और बढ़ जाती थी। गुस्से से भरे हुए चेहरे के बीच तुम्हारी आँखे में देखा था मैंने उस प्यार को जो तुम व्यक्त नही करती थी। ये मेरी किस्मत थी कि कभी आँसूं नही आए तुम्हारी आँखों मे, बस वो प्यारा सा गुस्सा ही झलकता था। 
जब अंतिम बार खामोश हुई थी  तुम तब न तुम्हारा चेहरा हर दफा जैसा था, न तुम्हारी ऑंखें मैं उस समय पढ़ पाया। उस बार तुम्हे खफा भी नही किया था मैंनेमुझे भान नही था कि वो खामोशी अंतिम थी। 
 हाँ अब भी खामोश होती हो तुम किन्तु बस ख्वाबो में। अब  ये ख्वाबों में आने का सिलसिला बन्द न करना कभी तुम।

शीर्षक रहित

"खत्म हो गया कालापानी तुम्हारा,
के अब भी फिर रहे हो मारे-मारे।
क्यों डूबे इतनी गहराई में,
जब मंजिल क्या रास्ते मे ओझल थे।
वो सागर इश्क़ का था,
जहाँ चहूँ ओर गुलाबी घेरा होता है,
उसमे फँसा हर इंसान,
बस इश्क़ की वेदी का एक फेरा होता है।
सुनो न इश्क़ मुकम्मल होगा,
न भटकना थमेगा दरबदर।
मैं तो कहता हूं धर लो वैराग्य,
हो जायेगा सारा तिलिस्म बेअसर। "

शनिवार, 22 जुलाई 2017

सकारात्मकता और नकारात्मकता तथा सफलता व असफलता : विमर्श

सकारात्मकता और नकारात्मकता के मध्य के एक महीन सी ही रेखा होती है,जिसके एक ओर सकारात्मकता होती है दूसरी ऒर नकारात्मकता
कुछ संज्ञानो को माध्यम से ये स्पष्ट करना चाहूँगा... 
एक दार्शनिक अवधारणा है #परमानन्द जिसके अंतर्गत ये माना जाता है की जब मनुष्य इतना सकरात्मक हो जाता है उसको न सुख और दुःख की अनुभति नहीं रह जाती है , हर स्थिति में वह एक सकरात्मक आनंद से अभिभूत रहता है.....दूसरी और आज के विध्वंसक उत्तर आधुनिक युग की एक मनोवैज्ञानिक समस्या है #अवसाद(डिप्रेसन) जिसका एक लक्षण यह है कि व्यक्ति न तो किसी बात में सुख का अनुभव करता है न ही किसी बात में दुःख का किन्तु यह स्थिति उस पर नकारात्मक भावना के प्रसार के कारण आती है .....इस प्रकार इन दोनों सकारात्मक और नकारात्मक अवधारणाओ का लक्षण लगभग एक सा है अंतर बस एक महीन सा है की एक स्थिति सकारात्मकता के संचार के कारण आई है तो दूसरी नकारात्मकता के संचार के कारण......ठीक ऐसी ही महीन सी रेखा सफलता और असफलता के बीच भी निर्मित होती है.. हम अपनी उन कमियों को दूर करके सफल हो सकते है जिनके फलस्वरूप हमें असफलता प्राप्त हुइ है और हम उनको खूबियों को बुझ कर सफल भी हो सकते है जो हमे मजबूती प्रदान करतीं हैं ...................परिस्थितिया भी प्रभावित करती है किन्तु सफलता और असफलता के बीच अंतर सिर्फ उन कारको का है जो व्यक्ति को आगे बढाते है या वो जो व्यक्ति हो पीछे करते है बस आवश्यकता है उन्हें पहचानने कि और तदनुसार आवश्यक प्रयत्नों को करने की.... 
#निष्कर्षतः हमें हारने या असफल होने पर निराश होने की आवश्यकता नहीं है , आवश्यक ये है की हम हार - जीत और सफलता-असफलता के बीच की उस महीन रेखा को समझकर उस आवश्यक कृत्य को सम्पादित कर ले जो हमारी सफलता और असफलता को सुनिश्चित करता है.

मंगलवार, 4 जुलाई 2017

अधूरी कहानी

"
कुछ कहानियां बिखरी हुई है जो अधूरी हैं।  एक कहानी मेरी है,जो पूरी होने की बाँट जोह रही है।
                         कुछ पन्नो पर शब्द अधिक उभरे हुए हैं,चमक बिखेर रही है उनमे विस्तृत चटक रंग की स्याही।
हाँ ये वही पन्ने हैं जिनमे सफलताओं को लिखा था। जिनमे वो स्याही बिखरी है जिनसे उपलब्धियों पर हर्षाया था।
                          कुछ अधजले से पन्ने दिख रहे हैं, वीभत्स सी लाल स्याही से जिनमे शब्द उकेरे हुए हैं। ये वो उपेक्षित पन्ने हैं जिनमे असफलताओं कि फेहरिस्त पड़ी हुई है ,कुछ जगजाहिर कुछ सिमित हैं स्वयं तक।
                          धुंधली स्याही से परिपूर्ण ,कही-कही से फटे हुए कुछ अधूरे पृष्ठ भी हैं। इनमे कुछ अधूरे सपने,कुछ अनकहे जज्बात लिखे हुए हैं।
                                                       यही कहानी का अधुरा हिस्सा है,जो पूरा होना चाहता है। हाँ कोई कहानी शुरू होती है तो पूरी जरुर होती है। ये भी पूरी होगी कभी किसी दिन और दरख्ते भर जाएँगे।" 

सोमवार, 3 जुलाई 2017

स्नेह बेच लेता हूँ

चलो आज स्नेह बेच लेता हूँ,
बेशकीमती हैं जो वो प्रेम बेच लेता हूँ।
तुम मेरे अपनत्व को तौलना,
मै तुम्हारा मोह माप लेता हूँ।
तुम सुनना मेरी बातो को मन लगाकर,
बदले में हर पल मै तुम्हे सोच लेता हूँ।
प्रेम को स्वार्थ से ,स्वार्थ को प्रेम से खरीद लेता हूँ,

जो तुम्हे भाता हो बस वो ही कह कर 
सच को अपने जहन में ही भींच लेता हूँ।
दिखावे  के बंधन में तुम्हे बांधकर,
संबंध बेमन का तुमसे माँग लेता हूँ।
जब कोई न मिले तब मुझे पुकारना,
मै खाली समय तुम संग बीता लेता हूँ।

छोड़ो बाते निःस्वार्थाता कि,
मत करना सच्चे प्यार की खोंखली बातेें,
फरेब है सब,झूठा ये सारा अफसाना है,
न रहा कोई रांझणा,न कोई दीवाना है।
हो जाओ मतलबी,
आंक लो कीमत संबंधो कि,
करो सौदेबाजी,
भावनाओ और सपनो की।

"नई नस्लों का जीवन धन्य कर दो"

तितलियों में थोड़ी और रंगत भर दो। जुगनुओं में थोड़ी और चमक भर दो। फूलों को ज्यादा खुशबुएँ दे दो। हिमानियों को अधिक सुदृढ़ कर दो। जल धाराओं को अ...