मंगलवार, 9 मई 2017

पुरानी डायरी

कविताएँ बिखरी पड़ी हैं यहाँ-वहाँ,जो लिखी थी तुम्हारे लिए।

एक पुराने बैग को खंगाल रहा था तभी एक पन्ना आ गया नजरों के सामने ।

उस दिन जब  तुम्हारी लिपिस्टिक जादा गाढ़ी हो गयी थी न,उसकी  नाराजगी लिखी थी मैंने उस पन्ने में।

अनायास ही मेरे  हाथ टेबल के उस खाँचे की ओर बढ़ चले,जहाँ रखी थी वो पुरानी डायरी, जिसमें उकेरे थे कई इल्जामात तुम पर।

तुम जब जब स्टेपकट बाल कटवा लेती थी न,तो वो बिलकुल जंचता नही था मुझे,गुथे हुए लम्बे बाल ही जमते हैं तुमपे।

जब आई लाइनर लगाकर आई थी न तुम आँखों में, तो न जाने कैसे उनमें ही उतरकर ले आया था शब्द मैं औरसजा दिया था उनको पन्ने में। ..

पहली  मुलाक़ात से लेकर,आखरी लम्हे तक की भावनाएं हैं उसमें शब्दों के रूप में।.......

तुमने ही तो भेंट की थी वो डायरी मुझे और तुम ही तो बसी हो उसमें इश्क स्याही से।...........


  

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