बुधवार, 8 फ़रवरी 2017

काली रातों के अनकहे अल्फाज

बेसब्र सा खालीपन है,                    
डाल से गिरने को बेचैन,
सूखा पत्ता हो जैसे।
विध्वंस की जमीन पे,
बिखरे ख्वाबों की नमी ,
सींच रही हो हृदय को जैसे।
तपता सा है कोई रंज है,
बेरंग सा प्रलाप लिऐ।
धुंधली सी एक मंजिल का,
टूटी-फूटी पगडडियों से बना,
अंधला रास्ता हो जैसे।

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