रविवार, 12 जून 2016

स्वयं की तलाश

कुछ गहरा
कुछ अप्रत्याशित सा
अभी खुद से हु
अंजान जरा।
कभी पोखर सा हु
बंधा हुआ,
कभी सागर सा अथाह हु मैं।
कभी उजला हु सबेरे सा,
कभी अंधला हु अँधेरे सा।
है असीमित इक्षाए भी,
है जज्बा भी अनंत सा,
चाह भी है असंभव की
कोसिस भी है हर सम्भव की।"

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