सोमवार, 6 जुलाई 2015

समर्पण

"मन और मष्तिष्क का अंतर
शून्य हो गया
ये एकरूपता तुमसे ही है
दोनों के द्वन्दो से मुक्त
मै स्वक्षंद हो गया
ये अल्हड़ता तुमसे ही है
तर्क और भावना का जुड़ाव हो गया
इस सम्भावना का आविर्भाव हो गया
ये गठबंधन तुमसे ही है
आकांक्षा और संतुष्टि
एकटक हो गये
ये समागम तुमसे ही है
राग ,द्वेश छुधा,तृष्णा
का अंत सब तुमसे ही है"

मनोरथ

"मन है रथ का अश्व
भ्रम में डूबा अदिश सा
विचरता है
सारथी तो आत्म है
जो दिशा ज्ञान उसे देता है
है मनोरथी वो
कर्मो के बीज बोता है
भावनाओ को थाम
उनसंग बहने से
रोकता है
मन स्वक्षंद सा हर ओर
आशक्त हो जाता है
आत्म इसे सही राह
बताता है
मन युद्ध का बीज बोता है
आत्म विजयश्री से
अंत करवाता है"
हाँ मनोरथी ये जीवन को
सार्थक बनाता है"

बुधवार, 1 जुलाई 2015

:) :)

रंगत एक सी है दोनों की
एक उषा दूजी संध्या
एक द्वार है उजियारे का 
दूजी चौखट अंधियारे का

बहुरंगिनी दुनिया में

"इस
 बहुरंगिनी दुनिया में
 भांति भांति के लोग मिले
 कुछ पत्तियों से कोमल थे
 जो मोहित हरपल करते थे
 जब पतझड़ आया टूट गये
 हा विकट समय में छुट गये
 कुछ शाखों से मजबूत मिले
 हर मौसम डटं के साथ खड़े
 हाँ उनके कदम भी ठिटक गये
 कुल्हाड़ी के प्रहार से टूट गये
  हाँ जड़ से कुछ सख्त मिले
  कठोरता से आलब्ध मिले
  वो जीवन भर को जुड़ गये
  हर कदम साथ को लब्ध मिले
   इस बहुरंगिनी दुनिया में
   भांति भांति के लोग मिले "

एक कविता सांवली सी

"सुनो एक कविता सांवली सी,
शाम का आवरण ओढ़े हुए,
विचरती हो वो खुशबू सी।
लता सी लटो को गुथे हुए,
वो निशा सुन्दरी श्यामली सी।
है लहराता आँचल पत्तो का,
पुष्प जड़ित चुनर है ।
प्रकृति का दामन थामे,
इठलाती सी वो अनुपम है।
वो निर्बन्ध हैं,अकथित हैं,
अथक प्रयत्नों के बाद भी,
शब्दो में अगठित हैं।
है उषा काल सा अम्बर उसका,
वो आधार पक्ष है नई सुबह का।"

"नई नस्लों का जीवन धन्य कर दो"

तितलियों में थोड़ी और रंगत भर दो। जुगनुओं में थोड़ी और चमक भर दो। फूलों को ज्यादा खुशबुएँ दे दो। हिमानियों को अधिक सुदृढ़ कर दो। जल धाराओं को अ...