मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

सार्थकता की ओर

सार्थकता से दूर
जा रहा है जीवन
दबी सी आवाज में
मुझसे कुछ
कह रहा है जीवन

इन छणिक
मनोभावों की पूर्ति में
लक्ष्य  से पीछे
हट रहा है जीवन

क्या मनोइछा
की पूर्ति ही सार्थकता है
नहीं ये तो स्वार्थपरता है

नहीं अब सार्थकता की
और जाना है
जीवन में संयम को
अपनाना है
बस लक्ष्य  की ओर
ध्यान लगान है

छोड़ कर सारे
झमेलों को
दुनियाभर के
मेलो को
बिना खिट -पिट
बिना शोर
ख़ामोशी से बढ़ना है
लक्ष्य  की ओर

लक्ष्य  हो ऐसा की
बनु में इतिहास
फैले नाम
जैसे फैला
ये आकाश

करे लोग मुझपर
विश्वास
मेरे जीवन से हो
संसार को लाभ

हाँ यही लक्ष्य  है
यही सत्य है
यही सार्थक है
यही प्रवर्तक है।

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