पीड़ा का आँगन हूँ!
पलती हैं मुझमें व्यक्त अव्यक्त सारी पीड़ाएँ।
पीड़ा बस मेरे मन की नही
तुम्हारी पीड़ा भी सहेजी है मैंने मुझमें।
मात्र पीड़ा ही नही
बहुत कुछ पलता है इस आँगन में।
श्वेत पुष्पो से परिपूर्ण
एक पौधा भी उगा है इस आँगन में
सदाहरित रहने वाला
हमारे आत्मीय उल्लास का प्रतीक।
प्रीत की ध्वनि उठाने वाले
वाद्ययंत्र भी रखे हैं एक कोने में
यदा कदा इनमें
विरह की ध्वनि भी बज उठती है।
एक चूल्हा भी है
पकता है प्रणय पाक जिसमें।
तड़प,प्रेम,अगन,विरह,सृजन।
सब फलता है इस आँगन में।
जो जुड़ा है तुमसे मुझसे और हमसे।
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