नींद की कश्ती में बैठकर जब सपनो की नदी से गुजर रहा था,तब किनारो पर खड़े चंदन के पेड़ों में तुम्हारी खुशबू ढूंढ रहा था, गुलमोहर और पलाश के फूलों में तुम्हारे रंग को तलाश रहा था।
तभी लाइट कट गयी और पंखा बन्द हुआ फिर मेरी नींद भी खुल गयी और ख्वाब भी टूट गया।
फिर खुली आँखों मे यादों की गलियों से गुजरता हुआ समय मे तीन वर्ष पीछे चला गया।
मध्यप्रदेश का अनूपपुर शहर था वो वहाँ पहली बार गया था मैं राज्य लोकसेवा आयोग की परीक्षा देने,
दो पालियों में थी परीक्षा।
परीक्षा केंद्र से कुछ ही दूरी पर एक नदी थी। प्रथम पाली कि परीक्षा के लिये जब मैं कक्ष में बैठा तो अपनी आदत के अनुसार एक दो बार नजरें घुमाकर एकबार कमरे में बैठे सारे परीक्षार्थियों पर नजर घुमाई । 30 लोगो मे से 2 अनुपस्थित थे। तभी मेरी उस पर पड़ी घुँघराले खुले बालों वाली एक लड़की जिसने अपने लाल रंग का सूट भी ऐसे पहना था जैसे प्रेस न किया गया हो मैं भी अपने कपड़े प्रेस नही करता। प्रथम पाली की परीक्षा के दौरान दर्जनों बार मैंने उसपर नजरें घुमाई जैसे सम्मोहित सा हो गया था। प्रथम पाली की परीक्षा खत्म होने के बाद मैं अपने दोस्त से बात कर रहा था और सभी की भीड़ के बीच वो कहाँ गुम हो गयी पता नही चला।
दूसरी पाली में 2 घण्टों का समय शेष था ज्यादा धूप थी नही इसलिए सभी परीक्षार्थी नदी के किनारे जाकर चट्टानों पर बैठ गए। मैंने भी अपना डेरा वहीं बना लिया
वहाँ बैठे बैठे भी मेरी नजरें बार बार उस लड़की को ढूंढ रहीं थीं। तभी वो घाट पर उतरती हुई नजर आई एकदम रूखापन था चेहरे पर अजीब सा जैसे किसी से गुस्सा जो।मेरी नजर इसके जूतों पर गयी स्पोर्ट्स सूज पहने हुए थे उसने जो ये कह रहे थे की ये लड़की कुछ अलग ही है
उन 2 घंटो में मैं लगातार उसे देखता रहा। यही सिलसिला दूसरी पाली की परीक्षा में भी चला। जाते वक्त मैं एकबार उसके पास से गुजरा बहुत अच्छी खुशबू थी जो उसके बालों से आ रही थी।
कुछ अस्त व्यस्त आ सूट , बिखरे बाल, स्पोर्ट सूज, रूखा सा अंदाज ये सब मेरे जेहन में बैठ गये औऱ वो झल्ली सी लड़की भी।
पर चाहते न चाहते मुझे रेलवे स्टेशन की ओर बढ़ना पड़ा।। लेकिन जाते जाते वो कैद सी हो गयी मेरे जेहन में।
"भीड़ के बीच औऱ रास्ते में किसी को देखना और उससे मिल जाना वास्तविकता नही है। वास्तविकता है किसी से आकर्षित होना पर फिर आगे अपने रास्ते पर बढ़ जाना। हाँ कुछ यादें जरूर साथ आ सकतीं हैं।"