जहाँ हवा में बहती सदभावना हो,
जहाँ कण-कण में विद्यमान एकता हो,
बनु मै हिस्सा उस भारत का,
जहाँ जर्रे-जर्रे में स्वतंत्रता हो।
जहाँ न जात-पात का बंधन हो,
जहाँ न ऊँच -नीच का संस्तरण हो,
बनु मै हिस्सा उस भारत का,
जहाँ फक्र से उठा हुआ हर सर हो।
जहाँ न वैश्मन्य का कोई अंश हो,
मानवता से ओत -प्रोत हर तंत्र हो,
बनु मै हिस्सा उस भारत का,
जहाँ प्रेम से भरा सभी का मन हो।
मै स्वार्थ से दूर हो जाऊँ,
अभिमान से विलग हो जाऊँ,
बनु मै हिस्सा उस भारत का
जहाँ दया और विवेक का वास हो।
जब इन बातो को पा जाऊँगा,
तब मैं स्वतंत्र कहलाऊंगा,
मायने क्या है स्वतंत्रता के,
तब दुनिया को बतलाऊंगा। "
जहाँ कण-कण में विद्यमान एकता हो,
बनु मै हिस्सा उस भारत का,
जहाँ जर्रे-जर्रे में स्वतंत्रता हो।
जहाँ न जात-पात का बंधन हो,
जहाँ न ऊँच -नीच का संस्तरण हो,
बनु मै हिस्सा उस भारत का,
जहाँ फक्र से उठा हुआ हर सर हो।
जहाँ न वैश्मन्य का कोई अंश हो,
मानवता से ओत -प्रोत हर तंत्र हो,
बनु मै हिस्सा उस भारत का,
जहाँ प्रेम से भरा सभी का मन हो।
मै स्वार्थ से दूर हो जाऊँ,
अभिमान से विलग हो जाऊँ,
बनु मै हिस्सा उस भारत का
जहाँ दया और विवेक का वास हो।
जब इन बातो को पा जाऊँगा,
तब मैं स्वतंत्र कहलाऊंगा,
मायने क्या है स्वतंत्रता के,
तब दुनिया को बतलाऊंगा। "
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