एक तरंग सी है मन में,
नयी उमंग सी है मन में।
बीते वक़्त की चंचलता ,अल्हड़ता
और अस्थिरता को इतर कर,,
सुनहरे भविष्य निर्माण की चाह ,
प्रचंड है मन में।
नियत को बांधकर , शीरत को जानकर,
अंतर्मन की विकृति को मानकर।
अपराध-बोध की आह,
का बंधन तोड़ ,,
सार्थकता की आवृत्ति असंख्य है मन में।
कोई कहता है जूठा सा, कभी लगता है टुटा सा ,,
थरथराता सा दम्भ है मन में।
मतलब के रिश्तो , फरेब के किस्सों,,
भावना के व्यंग-हाल से होकर मुकर
जीना है ऐसे की , ना हो कोई फिकर।
संवेगात्मक अतिशियोक्ति , बेसुध अभिव्यक्ति,,
अनकहे सब्दो को जेहन में कर दफ़न।
मुस्कान की चादर ओढ़,
सवारना है जीवन को जिसका न हो कोई छोर।
कमजोर पड़ती उम्मीद, धुंधली सी लकीर,,
हृदय की भरमाहाट का भान कर,
रिश्तो की मार्मिकता को जानकार,,
मजबूत कदमो से मंजिल की राहपर चलना है।
नयी उमंग सी है मन में।
बीते वक़्त की चंचलता ,अल्हड़ता
और अस्थिरता को इतर कर,,
सुनहरे भविष्य निर्माण की चाह ,
प्रचंड है मन में।
नियत को बांधकर , शीरत को जानकर,
अंतर्मन की विकृति को मानकर।
अपराध-बोध की आह,
का बंधन तोड़ ,,
सार्थकता की आवृत्ति असंख्य है मन में।
कोई कहता है जूठा सा, कभी लगता है टुटा सा ,,
थरथराता सा दम्भ है मन में।
मतलब के रिश्तो , फरेब के किस्सों,,
भावना के व्यंग-हाल से होकर मुकर
जीना है ऐसे की , ना हो कोई फिकर।
संवेगात्मक अतिशियोक्ति , बेसुध अभिव्यक्ति,,
अनकहे सब्दो को जेहन में कर दफ़न।
मुस्कान की चादर ओढ़,
सवारना है जीवन को जिसका न हो कोई छोर।
कमजोर पड़ती उम्मीद, धुंधली सी लकीर,,
हृदय की भरमाहाट का भान कर,
रिश्तो की मार्मिकता को जानकार,,
मजबूत कदमो से मंजिल की राहपर चलना है।