रविवार, 6 अगस्त 2017

अंतिम वृक्ष का आखरी सुखा पत्ता

"जब पहली दफा रूठे थे तुम,
 एक दरार सी उभर पड़ी थी इस जमीन पर।
 रुठते गए तुम और दरारे उपजती गईं फिर बंजर हो चली जमीन।
 उस जमीन के अंतिम वृक्ष के आखरी सूखे पत्ते सा हूँ मै ......
मेरी मंजिल तो शाख से टूटकर गिरना और खाक हो जाना है......
झेल रहा हूँ तपिश अभी  ,मगर थोड़ी सी नमी बाकि है मुझमें।   
न जाने क्यूँ लगता है कोई थाम लेगा मुझे हाथो में अपने।
फिजाएँ अब कुछ अधिक गर्म हो चलीं हैं अब,
रफ़्तार भी तेज है उनकी,
थपेड़े भी जरा जोर के हैं इनके।

क्या आ रहे हो मुझे थामने तुम?
या छोड़ दूँ मै शाख का दामन और बिखर जाऊं जमीन पर??

                          "अगर आओगे तो वो नमी ले आना थोड़ी।।।।।।।।।। वो जो तुम्हारे आने पर मेरी आँखों में उतर जाती है। और झट से सारे जख्मो को भर जाती है।

"नई नस्लों का जीवन धन्य कर दो"

तितलियों में थोड़ी और रंगत भर दो। जुगनुओं में थोड़ी और चमक भर दो। फूलों को ज्यादा खुशबुएँ दे दो। हिमानियों को अधिक सुदृढ़ कर दो। जल धाराओं को अ...