रविवार, 30 अप्रैल 2017

उत्तर पथिक का चुनौतियों को

प्रयत्न थे अथक ,
मुझे डिगाने के,
 मै लड़खड़ाया नही,
और सम्हलता गया।
फिजाओ ने मारे थपेड़े,
मुझे सुखाने को,                     
मै गहरा नही था इतना,
पर और होता गया।
बातो ने,प्रवाहो ने,आभावो नेे, 
कोशिस कि सबने मुझे मिटाने की,
मै और उभरता गया।
अंधियारी घटाएँ भी आईं, 
विप्लव लेकर छाई,
मैं बिखरा तो नही,
पर और निखरता गया।
विपरीत हुई लहरें, 
प्रचंड हुए तूफान,
मै हटा  नही पीछे,
दुगनी रफ्तार से बढ़ता गया।
परिस्थितियों से घबराया नही,
लड़ता गया।
चुनौतियों से जीवन की,
सज्ज होकर भिड़ता गया।

सोमवार, 10 अप्रैल 2017

तुम हो

उतर कर मन की गहराइयों में,
जिस लम्हे में,
मै उलझा था, वो लम्हा तुम हो।
जिसको हर छण देखकर,
हर पल सोचकर,
जिसमें असीमित डूब कर,
अतृप्त था।
वो नजारा,
वो किस्सा,
वो सागर तुम हो।
जिसको कभी समझ न पाया।
जिसको उतार न पाया शब्दों में।
वो धुंधला,अलबेला,अनकहा सा,
फ़साना तुम हो।
जो निर्बन्ध है मुझसे,
मैं बंधा हुआ हूँ जिससे बेकस,
वो बंधन तुम हो।
जो अकारण मुझपे हँसती है,
वो अट्ठाहस तुम हो।
हर छोर से मुझे उलझाई हुई जो,
मरीचिका है न वो तुम हो।
मेरा अधूरा सपना,अधूरा किस्सा,बेजोड़ हिस्सा,
शायद कोई अपना तुम ही हो हाँ तुम ही तो हो।

शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

औरो के सपने

औरो के सपने  उनकी उम्मीदें,
अपने अन्दर जीता है।  
उसने क्या चाहा था अपने लिए, 
क्या मायने थे उसके लिए जिन्दगी के,
जैसे भूल गया। 
जिन्दगी भाग रही है अपनी रफ़्तार से,
और धीरे धीरे वो खुद को खोता जा रहा है।  
कभी जरूरते बस आर्थिक है, 
बाकि सब का दर्जा दोयम है।  
उसे उसके लिए पापा की चाहत पूरी करनी है, 
उसे पूरा करना है जो माँ ने सोचा है।  
उसका भाई ,उसकी बहन उसे जहाँ देखना चाहते हैं, 
उसे वहां पहुचना है। .
उसे कहाँ जाना है, क्या करना ये कही दबा हुआ है।
शायद चिल्लाता भी है कोई  अन्दर से कई दफे, 
कभी दबती है चींखे, कभी उभर आती हैं. 
हाँ लेकिन एक आवाज जरुर आती है.
उसे सुनकर चलकर देखो कभी, 
खुद के बुने सपनो को जीकर देखो कभी।  

"नई नस्लों का जीवन धन्य कर दो"

तितलियों में थोड़ी और रंगत भर दो। जुगनुओं में थोड़ी और चमक भर दो। फूलों को ज्यादा खुशबुएँ दे दो। हिमानियों को अधिक सुदृढ़ कर दो। जल धाराओं को अ...